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वराह  : पुं० [सं० वर (=अभीष्ट)आ√हन् (खोदना)+ड] १. शूकर। सूअर। २. विष्णु के दस अवतारों में से एक जो शूकर के रूप में हुआ था। ३. एक प्राचीन पर्वत। ४. शिशुमार या सूस नामक जल-जंतु। ५. वाराही कन्द।
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वराह-कर्णी  : स्त्री० [सं० ष० त० ङीष्] अश्वगंधा लता।
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वराह-कल्प  : पुं० [मध्य० स०] वह काल या कल्प जिसमें विष्णु ने वराह का अवतार लिया था। वाराहकल्प।
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वराह-क्रांता  : स्त्री० [सं० तृ० त०] १. वाराह कल्प। २. लजालू।
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वराह-पत्री  : स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] अश्वगंधा।
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वराह-मिहिर  : पुं० [सं०] ज्योतिष के एक प्रसिद्ध आचार्य जो बृहत्संहिता पंचसिद्धांतिका और बृहज्जातक नामक ग्रन्थों के रचयिता थे।
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वराह-मुक्ता  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का कल्पित मोती जिसके संबंध में यह माना जाता है कि यह वराह या सूअर के सिर में रहता है।
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वराह-व्यूह  : पुं० [सं० मध्य० स० या उपमि० स०] एक प्रकार की सैनिक व्यूह-रचना जिसमें अगला भाग पतला और बीच का भाग चौड़ा रखा जाता था।
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वराह-शिला  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] एक विचित्र और पवित्र शिल्प जो हिमालय की एक चोटी पर है।
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वराह-संहिता  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] वराहमिहिर रचित ज्योति का बृहत्संहिता नाम का ग्रन्थ।
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वराहक  : पुं० [सं० वराह+कन्] १. हीरा। २. सूँस।
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वराहिका  : स्त्री० [सं० वराह+कन्-टाप्,इत्व] कपिकच्छु। केवाँच। कौंच।
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वराही  : स्त्री० [सं० वराह+ङीष्] १. वराह की मादा। शूकरी। सूअरी। २. [वराह+अच्+ङीष्] वाराही कंद। ३. नागर मोथा। ४. असगंध। ५. गौरैया की तरह का काले रंग का एक पक्षी। ६. दे्० ‘वाराही’।
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