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झं  : पुं० [अव्यक्त ध्वनि] १. धातु के किसी पात्र पर आघात होने से उसमें से निकलने वाला शब्द। २. हाथी की चिघाड़।
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झंकना  : अ० दे० ‘झीखना’।
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झंकाड़  : +पुं०=झंखाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंकार  : स्त्री० [सं० झन-कार, ब० स०] १. धातु के किसी पात्र पर आघात लगने पर कुछ समय तक उसमें से बराबर निकलता रहनेवाला झनझन शब्द। झनकार। २. कुछ कीड़ों के बोलने का झन झन शब्द। जैसे–झिल्ली या झींगुर की झंकार।
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झंकारना  : स० [सं० झंकार] धातु के किसी टुकड़े का पात्र पर इस प्रकार आघात करना कि वह झन झन शब्द करने लगे। अ० झन झन शब्द उत्पन्न होना।
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झंकारिणी  : स्त्री० [सं० झंकार+इनि-ङीप्] गंगा।
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झँकिया  : स्त्री० [हिं० झाँकना] १. छोटी खिड़की। झरोखा। २. झँझरी। जाली।
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झंकृत  : भू० कृ,० [सं० झन√ कृ(करना)+क्त] जिसमें से झंकार निकली या उत्पन्न हुई हो।
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झंकृता  : स्त्री० [सं० झंकृत+टाप्] तारा देवी।
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झंकृति  : स्त्री० [सं० झन्√ कृ(करना)+क्तिन्] झंकार।
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झँकोर  : पुं०=झकोरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँकोरना  : अ०=झकोरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँकोलना  : अ=झकोरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँकोला  : पुं=झकोरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंखना  : अ० १. दे० ‘झीखना’। २. दे० ‘झाँकना’।
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झंखर  : पुं०=झंखाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंखाड़  : पुं० [हिं० झाड़ का अनु०] १. काँटेदार अथवा और प्रकार के जंगली घने पौधे या उनका समूह। २. व्यर्थ के कूड़े-करकट का ढेर। वि० (वृक्ष) जिसके पत्ते झड़ गये हों।
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झंगरा  : पुं० [देश०] [स्त्री० अल्पा० झँगरी] बाँस की खपचियों का बना हुआ जालीदार बड़ा टोकरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंगा  : पुं०=झगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंगिया  : स्त्री०=झँगुली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँगुला  : पुं० [हि० झगा] [स्त्री० अल्पा० झँगुलिया, झँगुली] बच्चों के पहनने का छोटा कुरता।
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झँगुली  : स्त्री० [हिं० झँगुला का स्त्री०] छोटा झँगुला।
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झंजोड़ना  : स०=झझोड़ना।
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झंझ  : स्त्री० १. दे० ‘झाँझ’। २. दे० ‘झंझा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंझट  : स्त्री० [अनु०] ऐसा काम या बात जिसके साधन में कई प्रकार की छोटी मोटी कठिनाइयाँ हो और जिसके लिए विशेष परिश्रम या प्रयत्न करना पड़े। बखेड़ा।
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झंझटी  : वि० [हिं० झंझट] १. (काम या बात) जिसे संपादन करने में अनेक प्रकार की झंझटें खड़ी होती हों। २. (व्यक्ति) जो हर बात को उलझता तथा उसे झगड़े का रूप देता हो। ३. झगड़ालू।
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झंझन  : पुं० [सं०] झंकार।
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झंझनाना  : अ० [हिं० झन झन] झन झन शब्द उत्पन्न होना। स० झन झन शब्द उत्पन्न करना।
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झंझंर  : स्त्री० [सं० अलिंजर] मिट्टी का जल रखने का एक छोटा पात्र। वि०=झँझरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँझरा  : पुं० [हिं०] मिट्टी का छोटे-छोटे छेदोंवाला वह ढकना जिससे खौलता हुआ दूध ढका जाता है। वि० [स्त्री० झँझरी] १. जिसमें बहुत से छोटे-छोटे छेद हों। २. बहुत ही झीना या महीन (कपड़ा)
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झंझरि  : वि० [सं० जर्जर] जर्जर। क्षत-विक्षत। स्त्री०=झंझरी।
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झँझरी  : स्त्री० [हिं० झर झर से अनु०] १. किसी चीज में बने हुए बहुत से छोटे-छोटे छेदों का समूह। जाली। २. दीवारों आदि की जालीदार खिड़की या झरोखा। ३. लोहे के चूल्हें की वह जाली जिस पर जलते हुए कोयले रहते हैं। ४. छेद। सुराख। ५. आटा छानने की चलनी। छाननी। ६. लोहे का जालीदार पौना। झरना। ७. एक प्रकार की जल कीड़ा जिसमें छोटी नावों पर बैठकर उन्हें चक्कर देते हैं।
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झँझरीदार  : वि० [हिं० झंझरी+पा० दार] जिसमें बहुत से छोटे-छोटे छेद पास-पास बने हुए हों।
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झंझा  : स्त्री० [सं० झम√झट् (इकट्ठा होना)+ड-टाप्] १. वह तेज आँधी जिसके साथ पानी भी जोरों से बरसता हो। २. अंधड़। आँधी। वि० तेज। प्रचंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=झाँझ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंझा-मरुत्  : पुं=झंझानिल।
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झंझानिल  : पुं० [सं० झंझा+अनिल, मध्य० स०] १. प्रचंड वायु। आँधी। २. ऐसी आँधी जिसके साथ पानी भी बरसे।
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झंझार  : पुं० [सं० झंझा] आग की ऊंची तथा बड़ी लपट।
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झंझावात  : पुं=झंझानिल।
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झंझी  : स्त्री० [देश०] १. फूटी कौड़ी। २. दलालों को दलाली में मिलनेवाली रकम। (दलाल)।
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झँझोटी, झँझौटी  : स्त्री=झिंझौटी।
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झंझोड़ना  : सं० [सं० झर्झन] किसी चीज को अच्छी तरह पकड़कर जोर-जोर से तथा बार-बार झटकना या हिलाना जिससे वह टूट-फूट जाय या बेदम हो जाय। झकझोरना। जैसे–बिल्ली का कबूतर या चूहे को झँझोड़ना।
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झँझोरा  : पुं० [देश०] कचनार का पेड़।
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झंड  : स्त्री० [सं० जट] छोटे बालकों के जन्म काल के सिर के बाल बच्चों के मुंडन के पहले के बाल जो प्रायः कटवाये न जाने के कारण बड़े बड़े हो जाते हैं। मुहावरा–झंड उतारना=बच्चे का मुंडन संस्कार करना। पुं०=जंड (करील का वृक्ष)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंडा  : पुं० [सं० ध्वज+दंड, पा० धजोदंड, प्रा० झपअंड, गु० सि० झंडो, मरा० झेंडा] [स्त्री० अल्पा० झंडी] १. झंडे के सिर पर लगा हुआ कपड़े का वह आयताकार या तिकोना टुकड़ा जिस पर कुछ विशिष्ट चिन्ह बने होते हैं तथा जो किसी जाति, दल, राष्ट्र, संप्रदाय या समाज का प्रतीक चिन्ह होता तथा जो भवनों, मंदिरों, आदि पर फहराया जाता है। ध्वजा पताका। मुहावरा–(किसी बात का) झंडा खड़ा करना=इस रूप में कोई नया काम आरंभ करना कि और लोग भी आकर सम्मिलित हों तथा उसके अनुयायी बनें। जैसे–विद्रोह का झंडा खड़ा करना। (किसी स्थान पर) झंडा गाड़ना-किसी स्थान पर अधिकार कर लेने के उपरांत वहाँ अपना झंडा लगाना। जो विजय का सूचक होता है। झंडा फहराना=झंडा गाड़ना। (किसी के) झंडे तले आना=किसी की अधीनता स्वीकार करना तथा उसी के पक्ष में सम्मिलित होना या उसका अनुयायी बनना। पद–झंडे तले की दोस्ती=बहुत सी साधारण या आकस्मिक रूप से होनेवाली जान-पहचान। २. उक्त झंडे का प्रतीक कागज का वह छोटा टुकड़ा जिस प किसी राष्ट्र, संप्रदाय आदि के चिन्ह बने होते हैं। (फ्लेग)। पद–झंडा दिवस (दे०)। पुं० [सं० जयंत] ज्वार, बाजरे आदि पौधे के ऊपर का नर-फूल। जीरा।
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झंडा दिवस  : पुं० [हिं० झंडा+फा० दिवस] किसी विशिष्ट आंदोलन या लोकोपकारी कार्य से लोगों को परिचित कराने और उनकी सहानुभूति प्राप्त करने के लिए मनाया जानेवाला कोई विशिष्ट दिन जिसमें स्वयंसेवक लोग प्रतीक रूप में छोटे-छोटे झंडे बेचते और बड़े-बड़े घर, दूकानों आदि पर लगाते हैं। (फ्लेग डे)।
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झंडी  : स्त्री० [हिं० झंडा का स्त्री० अल्पा० रूप] कपड़े, कागज आदि का बना हुआ छोटा झंडा जिसका व्यवहार प्रायः दीवारों पर सजावट आदि के लिए लगाने और सेना आदि में संकेत कराने के लिए होता है। पद–लाल झंडी=किसी प्रकार के अनिष्ट या संकट की सूचना देनेवाला पदार्थ या संकेत।
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झंडीदार  : वि० [हि० झंडी+फा० दार] जिसमें झंडी लगी हो।
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झँडूलना  : पुं० दे० ‘झँडूला’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँडूला  : वि० [हिं० झंड+ऊला (प्रत्यय)] १. (बालक जिसके सिर पर जन्म काल के बाल अभी तक वर्तमान हों। जिसका अभी मुंडन संस्कार न हुआ हो। २. (सिर के बाल) जो गर्भ-काल से ही चले आ रहे हों और अभी तक मूँडे न गये हों। ३. घनी डालियों और पत्तियोंवाला। सघन। (वृक्ष)। पुं० १. वह बालक जिसके सिर पर अभी तक गर्भ के बाल हों। २. गर्भ समय से चले आये हुए बाल जो अभी तक मूँड़े न गये हों। ३. घनी डालियों और पत्तियोंवाला वृक्ष। ४. =झुंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झ़डूला  : वि०=झंडूला।
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झंडोत्तोलन  : पुं० [हिं० झंडा+उत्तोलन] झंडा फहराने की क्रिया या रस्म। ध्वजोत्तलन। (असिद्ध रूप)।
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झंप  : पुं० [सं० झम√पत् (गिरना)+ड] १. उछलने की क्रिया या भाव। उछाल। २. कूदने की क्रिया या भाव। कुदान। क्रि० प्र०–देना।–मारना। ३. बहुत शीघ्रता से होनेवाली उन्नति या वृद्धि। पुं०=झांप।
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झँपकना  : अ० १.=झपकना। २.=झँपना।
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झँपकी  : स्त्री०=झपकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँपताल  : पुं०=झपताल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँपना  : अ० [सं० झंप] १. उछलना। २. कूदना। ३. झपटना। ४. एकदम से आ पहुँचना। टूट पड़ना। ५. झेंपना। ६. पलकों का गिरना या बंद होना। ७.आड़ में होना। छिपना। ८. सो जाना। उदाहरण–वृक्ष मानों व्यर्थ बाट निहार। झँप उठे हैं झीम, झुक थक, हार।–मैथिलीशरण। स० १. आड़ में करना। छिपाना। २. ढकना। ३. बन्द करना। मूँदना।
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झँपरिया  : स्त्री=झँपरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँपरी  : स्त्री० [हिं० झापना=ढकना] वह कपड़ा जो डोली या पालकी के ऊपर डाला जाता है। ओहार।
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झंपा  : पुं० १. दे० झब्बा। २. दे० बाल (अनाज की)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंपाक  : पुं० [सं० झंप√अक् (जाना)+अण्] [स्त्री० झंपाकी] बंदर।
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झँपान  : पुं० [सं० झप] पहाड़ों पर सवारी के काम आनेवाली एक प्रकार की खटोली।
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झंपारु  : पुं० [सं० झंप-आ√ रा(लेना)+डु] बंदर।
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झंपित  : भू० कृ० [सं० झंप] १. ढका हुआ। २. छिपा हुआ।
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झँपिया  : स्त्री० [हिं० झाँपा] छोटा झाँपा।
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झंपी(पिन्)  : पुं० [सं० झप+इनि] बंदर।
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झँपोला  : पुं० [हिं० झाँपा+ओला (प्रत्यय)] [स्त्री० अल्पा० झँपोली या झँपोलिया] १. छोटा झाँपा। २. पिटारा।
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झंब  : पुं० [देश०] गुच्छा (प्रायः फलों का गुच्छा)।
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झँवकार  : वि० [हिं० झाँवला-काला] झाँवे के रंग का। कुछ-कुछ काला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँवन  : स्त्री० [हिं० झँवाना] १. झँवाने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. किसी चीज का वह अंश जो झँवाने या किचित् जल जाने के कारण कम हो जाय। जैसे मशीन में पीसे जाने पर गेहूँ या आटे की झँवन।
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झँवराना  : अ० [हिं० झाँवर] १. झाँवला या कुछ काला पड़ना। २. कुम्हलाना। मुरझाना। स० १. झाँवला या कुछ-कुछ काला करना। २. कुम्हलाने या मुरझाने में प्रवृत्त करना।
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झँवा  : पुं०=झाँवाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँवाना  : अ० [हिं० झाँवाँ] १. ताप आदि के प्रभाव से झाँवे के रंग का हो जाना। कुछ काला या झाँवला हो जाना। जैसे–धूप से शरीर का रंग झँवाना। २. अग्नि का जलते-जलते बुझने को होना। आँच धीमी या मन्द पड़ना। ३. जलने, सूखने आदि के कारण किसी चीज का कुछ अंश कम होना या घट जाना। ४. कुम्हलाना। मुरझाना। ५. निर्जीव या बेदम होना। उदाहरण–मुरछित अवनी परी झँवाई।–तुलसी। ६. शरीर के किसी अंग का झाँवें से रगड़ कर साफ किया जाना। ७. झेंपना। स० १. ताप आदि के प्रभाव से किसी चीज को झांवे के रंग का अर्थात् झाँवला या कुछ कुछ काला कर देना। २. ऐसा करना कि आग धीमी या मंद पड़कर बुझने लगे। ३. जला या सुखाकर किसी चीज का कुछ अंश कम करना या घटाना। ४. कुम्हलाने या मुरझाने में प्रवृत्त करना। ५. शरीर का कोई अंश साफ करने के लिए उसे झाँवे से रगड़ना। ६. निर्जीव या बेदम करना। ७. लज्जित या शरमिंदा करना।
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झँवावना  : स० [हिं० झँवाना] झँवाने का काम किसी दूसरे से कराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँवैला  : वि० [हिं० झाँवाँ+ऐला (प्रत्यय)] [स्त्री० झँवेली] १. जो लकर झाँवे के रंग का हो गया हो। झँवाया हुआ। २. झाँवे के रंग का। कुछ-कुछ काला। ३. झाँवे से रगड़ा हुआ।
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झँसना  : अ० [अनु०] १. शरीर के किसी अंग में तेल या और कोई चीज कोई प्रभाव उत्पन्न करने के लिए बार-बार रगड़ते हुए मलना। जैसे–सिर में तेल झँसना, पैरों के तलुओं में कद्दू या फूल की कटोरी झँसना। २. झाँसा देकर किसी से कुछ धन वसूल करना। तिकड़म से किसी की कोई चीज ले लेना।
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