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शब्द का अर्थ

जीव  : पुं० [सं०√जीव+घञ्] १. वह जिसमें चेतना और जीवन या प्राण हो और जो अपनी इच्छा के अनुसार खा-पी और हिल डुल सकता हो। जीवधारी। प्राणी। २. प्राणियों में रहनेवाला चेतन तत्त्व। जीवात्मा। ३. जान। प्राण। ४. विष्णु। ५. वृहस्पति। ६. आश्लेषा नक्षत्र। ७. बकायन का पेड़।
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जीव-दया  : स्त्री० [स० त०] जीवों पर उनके जीवन की रक्षा के विचार से की जानेवाली दया।
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जीव-दान  : पुं० [ष० त०] १. वश में आये हुए अपराधी या शत्रु को बिना उसके प्राण लिए छोड़ देना। २. किसी मरते हुए प्राणी की रक्षा करके उसे मरने से बचाना।
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जीव-धन  : पुं० [ब० स०] वह जो जीवों अर्थात् पशु पक्षियों आदि को रखकर उनसे जीविका चलाता हो। वह जिसके लिए जीव या जानवर ही धन हो। वि० जो किसी के जीवन का धन या सर्वस्व हो। परमप्रिय। जीवन–धन।
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जीव-धातु  : स्त्री० [ष० त०] कुछ विशिष्ट रासायनिक तत्त्वों से बना हुआ वह पारदर्शक स्वच्छ तत्त्व या धातु जिसमें जीवनी-शक्ति होती है और जो आधुनिक विज्ञान में जीवों, जंतुओं वनस्पतियों आदि के भौतिक स्वरूप का मूल आधार माना जाता है। (प्रोटो प्लाज्म)।
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जीव-धानी  : स्त्री० [ष० त०] वह आधार जिस पर जीव रहते हैं पृथ्वी।
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जीव-न्यास  : पुं० [ष० त०] मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करते समय कहा जानेवाला एक मन्त्र।
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जीव-पति  : पुं० [ष० त०] धर्मराज।
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जीव-पत्नी  : स्त्री० [ब० स०] स्त्री, जिसका पति जीवित हो। सधवा।
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जीव-पत्री  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] जीवंती नामक लता।
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जीव-पुत्र  : पुं० [ब० स०] [स्त्री० जीवपुत्रा] वह जिसका पुत्र जीवित हो।
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जीव-पुष्पा  : स्त्री० [ब० स०] बड़ी जीवंती।
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जीव-प्रभा  : स्त्री० [ष० त०] आत्मा। रूह।
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जीव-प्रिया  : स्त्री० [ष० त०] हरीतकी। हर्रे।
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जीव-बन्धु  : पुं० [ष० त०] गुल दुपहिया या बंधूक नामक पौधा और उसका फूल।
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जीव-भद्रा  : स्त्री० [ब० स० टाप्] जीवंती नामक लता।
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जीव-मातृका  : स्त्री० [ष० त०] १. वे सात देवियाँ जो जीवों का कल्याण पालन आदि माता के समान करती है। विशेष–ये सात देवियाँ है-कुमारी, धनदा, नंदा, विमला, मंगला बला और पद्मा। २. उक्त देवियों में से हर एक।
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जीव-याज  : पुं० [तृ० त०] वह यज्ञ जिसमें पशुओं की बलि दी जाती हो।
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जीव-योनि  : स्त्री० [कर्म० स०] १. सजीव सृष्टि। २. [ष० त०] जीव-जंतु का वर्ग या समूह। पुं० वह जीव या प्राणी जो इंद्रियों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करता हो।
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जीव-रक्त  : पुं० [मध्य० स०] रजस्वला स्त्री की योनि से जानेवाला रक्त।
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जीव-लोक  : पुं० [ष० त०] वह लोक जिसमें जीव रहते हों। भू-लोक।
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जीव-वल्ली  : स्त्री० [कर्म० स०] क्षीर काकोली (पौधा)।
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जीव-विज्ञान  : पुं० [ष० त०] वह विज्ञान जिसमें जीवों की उत्पत्ति, विकास शारीरिक रचना और उनके रहन सहन पर विचार किया जाता है। इसी विज्ञान की शाखाओं के रूप में, वनस्पति विज्ञान, प्राणिविज्ञान आकारिकी आदि की गिनती होती है(बायलाँजी)
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जीव-वृत्ति  : स्त्री० [ष० त०] १. जीव की वृत्ति अर्थात् गुण, धर्म और व्यापार। २. [कर्म० स०] जीव-जंतुओं का पालन-पोषण करके चलाई जानेवाली जीविका।
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जीव-शाक  : पुं० [कर्म० स०] मलाया में बहुतायत से पाय़ा जानेवाला एक प्रकार का साग। सुसना।
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जीव-शुक्ला  : स्त्री० [कर्म० स०] क्षीर काकोली (पौधा)।
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जीव-संक्रमण  : पुं० [ष० त०] जीव का एक योनि से दूसरी योनि अथवा एक शरीर से दूसरे शरीर में जाना।
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जीव-साधन  : पुं० [ष० त०] धान।
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जीव-सुत  : पुं० [ष० त०] [स्त्री० जीव-सुता] वह जिसका पुत्र जीवित हो।
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जीव-स्थान  : पुं० [ष० त०] हृदय, जिसमें जीव निवास करता है।
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जीव-हत्या  : स्त्री० [ष० त०] १. जीवों को मारने की क्रिया या भाव। २. धार्मिक दृष्टि से वह पाप जो जीवों को मारने से लगता है।
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जीव-हिंसा  : स्त्री० [ष० त०] जीव-हत्या।
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जीवक  : पुं० [सं० जीव+कन्] १. जीवधारी। प्राणी। २. [√जीव्+णिच्+ण्वुल्-अक] बौद्ध क्षपमक या भिक्षु। ३. सूद-ब्याज से जीविका निर्वाह करनेवाला व्यक्ति। महाजन। ४. मनुष्य के वे सब कार्य जो सामूहिक रूप में उसकी उन्नति या अवनति के सूचक होते हैं। (केरियर) ५. सँपेरा। ६. नौकर। सेवक। ७. पीतसाल नामक वृक्ष। ८. वैद्यक में अष्ट-वर्ग के अन्तर्गत एक प्रकार का कंद जो कामोद्दीपक और बलवर्द्धक कहा गया है।
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जीवंजीव  : पुं० [सं० जीव√ जीव् (जीना)+णिच्+च्, मुम्+] १. चकोर पक्षी। २. एक वृक्ष का नाम।
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जीवजीव  : पुं० [सं०=जीवञ्जीव,पृषो० सिद्धि] चकोर पक्षी।
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जीवट  : पुं० [सं० जीवक] हृदय की वह दृढ़ता जिसके कारण मनुष्य साहसिक कार्यों में निर्भय होकर प्रवृत्त होता है। दम। साहस हिम्मत।
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जीवड़ा  : पुं० [सं० जीव] १. जीव, विशेषतः तुच्छ जीव। २. जीवन। ३. जीवन। ४. धोबी, नाई आदि को उनकी सेवाओं के बदले दिया जानेवाला अनाज।
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जीवंत  : पुं० [सं०√जीव्+झ-अन्त] १. जीवनी शक्ति। प्राण। २. औषध। दवा। ३. जीव नाम का साग। वि० जिसमें प्राण हों। जीता जागता। जीवित।
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जीवंतक  : पुं० [सं० जीवंत+कन्] जीव शाक।
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जीवति  : स्त्री० [सं० जीवत्] जीविका।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जीवंतिका  : स्त्री० [सं० जीवंत+कन्-टाप्, इत्व] १. वह वनस्पति जो दूसरे वृक्षों पर रहकर और उन्हीं के शरीर से रस चूसकर फैलती या बढती हो। बंदा। बाँदा। २. गुडूची। गुरुच। ३. जीव नामक साग। ४. जीवंत लता। ५. एक प्रकार की पीली हर्रे। ५. शमी वृक्ष।
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जीवंती  : स्त्री० [सं० जीवंत+ङीष्] १. एक प्रकार की लता जिसकी टहनियों में दूध होता है और जिसकी पत्तियाँ दवा के काम में आती है। २. एक प्रकार की पीली हर्रे। ३. गुडूची। गुरुच। ४. परगाछा। बाँदा। ५. शमी वृक्ष।
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जीवत्  : वि० [√जीव्+शतृ]=जीवित। (मुख्यतः यौगिक पदों के आरम्भ में, जैसे–जीवत्पति=सधवा स्त्री)।
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जीवत्तोका  : स्त्री० [जीवत-तोक, ब० स] वह स्त्री जिसके बच्चे जीते हों।
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जीवत्पत्ति  : स्त्री० [ब० स०] वह स्त्री जिसका पति जीवित हो। सधवा या सौभाग्यवती स्त्री।
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जीवत्पितृक  : पुं० [ब० स० कप्] वह जिसका पिता जीवित हो।
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जीवत्पुत्रिका  : वि० [जीवत्-पुत्र, ब० स०+कन्-टाप्, इत्व] (स्त्री) जिसका पुत्र या जिसके पुत्र जीवित हों अर्थात् वर्तमान हों।
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जीवत्पुत्रिका व्रत  : पुं० [सं०] आश्विन् कृष्ण अष्टमी को होनेवाला स्त्रियों का एक व्रत या जो वे अपनी सन्तान के कल्याण के लिए कामना से करती हैं।
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जीवथ  : पुं० [सं०√जीव्+अथ] १. जीवनी शक्ति। प्राण। २. बादल। मेघ। ३. मोर। ४. कछुआ। वि० १. दीर्घ जीवी। २. =धर्म निष्ठ।
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जीवद  : वि० [सं० जीव√दा (देना)+क] जीवन या प्राण देनेवाला। पुं० १. वैद्य। २. जीवक पौधा। ३. जीवंती। ४. शत्रु।
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जीवद्बर्तृका  : स्त्री० [सं० जीवत्-भर्तृ, ब० स० कप्, टाप्]=जीवत्पति।
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जीवद्भत्सा  : वि० स्त्री० [सं० जीवत-वत्स, ब० स०] जिसका पुत्र जीवित हो।
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जीवधारी(रिन्)  : वि० [सं० जीव√धृ (धारण)+णिनि] (वह) जिसमें जीव अर्थात् जीवनीशक्ति हो। जीव-युक्त। पुं० प्राणी।
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जीवन  : पुं० [सं०√जीव्+ल्युट-अन] [वि० जीवित] १. वह नैसर्गिक शक्ति जो प्राणियों, वृक्षों आदि को अंगों और उपांगों से युक्त करके सक्रिय और सचेष्ट बनाती है और जिसके फलस्वरूप वे अपना भरण-पोषण करते हुए अपने वंश की वृद्धि करते हैं। आत्मा या प्राणों से पिंड या शरीर से युक्त रहने की दशा या भाव। जान। प्राण। विशेष–आधुनिक विज्ञान के मत से वह विशिष्ट प्रकार की क्रिया-शीलता है जो समस्त जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और मानव जाति में पाई जाती है। इसके ये मुख्य पाँच लक्षण माने गये हैं-गतिशीलता, अनुभूति या संवदेन, आत्मपोषण, आत्म-वर्धन और प्रजनन। जब तक भौतिक तत्त्वों से बने पिंड या शरीर में आत्मा या प्राण रहते हैं तब तक वह चेतन और जीवित रहता है। इसकी विपरीत दशा में वह नष्ट हो जाता या मर जाता है। जिन पदार्थों में आत्मा या प्राण होते ही नहीं, वो अचेतन और निर्जीव कहलाते हैं २. किसी विशिष्ट रूप या शरीर में आत्मा के बने रहने की सारी अवधि या समय। जिंदगी। जैसे–अमर या शाश्वत जीवन, पार्थिव या भौतिक जीवन। ३. किसी वस्तु या व्यक्ति के आदि से अन्त तक अथवा जन्म से मरण तक की सारी अवधि या समय। जैसे–(क) इस प्रकार के भवनों (या मंदिरों) का जीवन कई सौ वर्षो का होता है। (ख) बहुत से कीड़ों-मकोड़ो का जीवन कुछ घंटों या (दिनों) का होता है। ४. भौतिक शरीर में प्राणों के बने रहने की अवस्था या दशा। जैसे–(क) हमारे लिए यह जीवन मरण का प्रश्न है। (ख) डूबे हुए बच्चे को तुरंत जल से निकाल कर उसमें फिर से जीवन लाया गया। ५. किसी प्राणी के अस्तित्व काल का वह विशिष्ट अंग, अंश या पक्ष जिसमें वह किसी विशेष प्रकार से या विशेष रूप में रहकर अपने दिन बिताता हो। जैसे–(क) आध्यात्मिक या वैवाहिक जीवन। (ख) ग्राम्य, नागरिक सभ्य या सैनिक जीवन। (ग) दरिद्रता या पराधीनता का जीवन। ६. किसी विशिष्ट प्रकार के क्रिया-कलाप, व्यवसाय या व्यापार में बिताई जानेवाली कोई अवधि या उसका कोई अंश। जैसे–(क) खेल-कूद या भोग-विलास का जीवन। (ख) बढ़इयों, लोहारों या सुनारों का जीवन। ७. वह तत्त्व, पदार्थ या शक्ति जो किसी दूसरे तत्व पदार्थ या व्यक्ति का अस्तित्व बनाये रखने के लिए अनिवार्य अथवा उसे सुखमय रखने के लिए परम आवश्यक हो। जैसे–जल (या वायु) ही सब प्राणियों का जीवन है। ८. उक्त के आधार पर, कोई परम प्रिय वस्तु या व्यक्ति। उदाहरण–जीवन मूरि हमारी अली यह कौन कह्यौ तोहि नंद लला है।-बलबीर। ९. वह जिससे किसी को कुछ करने या अपना अस्तित्व बनाये रखने की पूरी प्रेरणा या शक्ति प्राप्त होती है। जान। प्राण। जैसे–आप ही तो इस संस्था के जीवन हैं। १॰. वह तत्त्व या बात जिसके वर्तमान होने पर किसी दूसरे तत्त्व या बात में यथेष्ठ ऊर्जा, ओज आदि अथवा यथेष्ठ वांछित प्रभाव उत्पन्न करने या फल दिखाने की शक्ति दिखाई देती है। जैसे–किसी जाति या दल का संघटन में दिखाई देनेवाला जीवन। ११. वायु। हवा। १२. जल। पानी। १३. नवनीत। मक्खन। १४. हड्डियों के अन्दर का गूदा। मज्जा। १५. जीविका निर्वाह का साधन। वृत्ति। १६. पुत्र। बेटा। १७. परमात्मा। परमेश्वर। १८. जीवक नामक ओषधि। वि० परम प्रिया। बहुत प्यारा।
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जीवन-कारण  : पुं० [ष० त०] न्याय-दर्शन में जीव या प्राणी के वे कृत्य या प्रयत्न जो बिना इच्छा, द्वेष आदि के आप से आप और प्राकृतिक रूप से बराबर होते रहते हैं। जैसे–श्वास, प्रश्वास आदि।
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जीवन-चरित्र  : पुं०=जीवन-चरित।
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जीवन-धन  : वि० [ष० त०] १. जो किसी के जीवन का धन अर्थात् सर्वस्व हो। परम प्रिय। २. प्राणाधार। प्राण-प्रिय।
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जीवन-नौका  : स्त्री० [ष० त०] वह छोटी नौका जो बड़ों जहाजों पर इसलिए रखी जाती है कि जब जहाज डूबने लगे तब लोग उस पर सवार होकर अपनी जान बचा सकें। (लाइफ बोट)।
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जीवन-प्रभा  : स्त्री० [ष० त०] आत्मा।
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जीवन-प्रमाणक  : पुं० [ष० त०] इस बात का प्रमाण कि अमुख व्यक्ति अमुक दिन या तिथि तक जीवित था अथवा इस समय जीवित हैं। (लाइफ सर्टिफिकेट)
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जीवन-बूटी  : स्त्री० [सं० जीवन+हिं० बूटी] १. वह कल्पित जड़ी या बूटी जिसके संबंद्ध में प्रसिद्ध है कि वह मरे हुए आमदी को जिला देती है। संजीवनी। २. लाक्षणिक अर्थ में, वह चीज जो किसी के जीवन का आधार हो। ३. प्राण-प्रिय वस्तु।
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जीवन-वृत्  : पुं० [ष० त०] १. जीवन-चरित। २. किसी जीव या प्राणी के आदि से अंत तक की सब घटनाओं या बातों का वर्णन या इतिहास। (लाइफ-हिस्ट्री)।
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जीवन-वृत्तांत  : पुं० [ष० त०] जीवन-वृत्त।
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जीवन-संग्राम  : पुं०=जीवन-संघर्ष।
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जीवन-संघर्ष  : पुं० [ष० त०] प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित बने रहने या जीविका उपार्जन करने के लिए किया जानेवाला विकट प्रयत्न या प्रयास। (स्ट्रगल फार एक्जिस्टेन्स)।
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जीवन-हेतु  : पुं० [ष० त०] जीविका। रोजी।
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जीवनक  : पुं० [सं० जीवंन+कन्] १. आहार। २. अन्न।
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जीवनमूरि  : स्त्री०=जीवन-बूटी।
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जीवनवृत्ति  : स्त्री० [ष० त०] जीविका। रोजी।
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जीवना  : पुं० [सं०√जीवन+णिच्+युच्-अन, टाप्] १. महौषध। अ०=जीना (जीवित रहना)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स०=जीमना (भोजन करना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जीवनाघात  : पुं० [सं० जीवन-आघात, ब० स०] विष।
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जीवनांत  : पुं० [जीवन-अंत, ष० त०] जीवन का अंत अर्थात् मृत्यु।
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जीवनार्ह  : पुं० [सं० जीवन-अर्ह, ष० त०] १. अन्न। २. दूध।
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जीवनावास  : वि० [सं० जीवन-आवास, ब० स०] जल में रहनेवाला। पुं० १.=वरुण। २. =देह। शरीर।
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जीवनि  : वि० [सं० जीवनी] १. (ऐसी ओषधि या वस्तु) जो किसी को जीवित रखने में विशिष्ट रूप से समर्थ हो। २. अत्यन्त प्रिय (वस्तु या व्यक्ति)। पुं० १. संजीवनी बूटी। २. काकोली। ३. तिक्त जीवंती। डोडी। ४. मेदा नाम की ओषधि। स्त्री=जीवनी।
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जीवनी  : स्त्री० [सं० जीवन+ङीष्] १. काकोली। २. जीवंती। ३. महामेदा। ४. डोडी। तिक्त जीवंती। स्त्री=जीवन-चरित।
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जीवनीय  : वि० [सं०√जीव+अनीयर] १. जो जीवित रखने या रहने योग्य हो। जी सकने वाला। २. जीवन या जीवनी शक्ति प्रदान करने वाला। ३. अपनी जीविका आप चलानेवाला। पुं० १. =जल। पानी। २. जयंती वृक्ष। ३. दूध (डिं०)।
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जीवनीय-गण  : पुं० [ष० त०] वैद्यक में बलकारक ओषधों का एक वर्ग जिसके अंतर्गत अष्टवर्ग, पर्णिनी, जीवंती, मधूक और जीवन नामक वनस्पतियाँ हैं।
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जीवनीया  : स्त्री० [सं० जीवनीय+टाप्] जीवंती नामक लता।
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जीवनेत्री  : स्त्री० [सं० जीव√नी (ढोना)+तृच्-ङीष्] सैंहली वृक्ष।
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जीवनोपाय  : पुं० [सं० जीवन-उपाय,ष० त० ] जीवन के निर्वाह और रक्षा के उपाय या साधन। जीविका। रोजी।
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जीवनौषध  : स्त्री० [जीवन-औषध, ष० त०] वह औषध जिसमें मरता हुआ प्राणी जी जाय। जीवन बूटी। संजीवनी।
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जीवन्मुक्त  : वि० [सं०√जीव्+शतृ, जीवन-मुक्त, कर्म० स०] [भाव० जीवनमुक्ति] (जीव) जिसने आत्म ज्ञान प्राप्त कर लिया हो और इसी लिए जो आवागमन के बंधन से मुक्त हो गया हो।
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जीवन्मुक्ति  : स्त्री० [सं० जीवत्-मृत, कर्म० स०] जीवन्मुक्त होने की अवस्था या भाव।
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जीवन्मृत  : वि० [सं० जीवत्-मृत्,कर्म.स०] (अधम प्राणी) जो जीवित होने पर भी मरे हुए के समान हो।
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जीवपुत्रक  : पुं० [सं० जीवपुत्र+कन्] १. जिया-पोता या पुत्रजीव नामक वृक्ष। २. इंगुदी का पेड़। हिंगोट।
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जीवबंद  : पुं०=जीवबंधु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जीवरा  : पुं०=जीव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जीवरी  : स्त्री०=जीवन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जीवला  : स्त्री० [सं० जीव√ला (लेना)+क-टाप्] सिंह पिप्पली।
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जीवसू  : स्त्री० [सं० जीव√सू (प्रसव)क्विप्] वह स्त्री जिसकी सन्तान जीवित हो।
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जीवा  : स्त्री० [सं०√जीव्+णिच्+अच्-टाप्.] १. एक सिरे से दूसरे सिरे तक जानेवाली सीधी रेखा। ज्या। २. धनुष की डोरी। ३. जीवंती नामक लता। ४. बच। बचा। ५. जमीन भूमि। ६. जीविका। ७. जीवन।
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जीवाजून  : स्त्री०=जीव-योनि।
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जीवाणु  : पुं० [जीव-अणु, ष० त०] १. सेन्द्रिय जीवों का वह मूल और बहुत सूक्ष्म रूप जो विकसित होकर नये जीव का रूप धारण करता है। २. जीवनी-शक्ति से युक्त ऐसे अणु जो प्रायः अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं। (जर्म)।
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जीवांतक  : वि० [जीव-अतंक, ष० त०] जीव या प्राण अथवा जीवों या प्राणियों का अन्त या नाश करनेवाला। पुं० १. यमराज। २. वधिक। ३. बहेलिया। व्याध।
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जीवातु  : पुं० [सं०√जीव्+आतु] वह ओषधि जिससे प्राणों की रक्षा होती हो। प्राण-दान करनेवाली ओषधि।
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जीवातुमत्  : पुं० [सं० जीवातु+मतुप्] आयुष्काम यज्ञ के एक देवता जिनसे आयुवृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
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जीवात्मा(त्मन्)  : पुं० [जीव-आत्मन् ष० त०] १. जीव या प्राणियों में रहनेवाली आत्मा। वह शक्ति जिसके कारण प्राणी जीवित रहते हैं। २. हृदय। जैसे–किसी की जीवात्मा नहीं दुखानी चाहिए।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जीवादान  : पुं० [जीव-आदान, ष० त०] बेहोशी। मूर्च्छा।
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जीवाधार  : पुं० [जीव-आधार, ष० त०] हृदय जो आत्मा का आधार या आश्रय माना जाता है।
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जीवावशेष  : पुं० [जीव-अवशेष, ष० त०]=जीवाश्म।
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जीवाश्म-विज्ञान  : पुं० [ष० त०] वह विज्ञान जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि भिन्न प्राचीन युगों में कहाँ-कहाँ और किस प्रकार के जीव होते थे। पुराजैविकी। (पेलिएन्टालोजी)
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जीवाश्म(न्)  : पुं० [जीव-अश्मन्, ष० त०] बहुत प्राचीन काल के जीव-जंतुओं, वनस्पतियों आदि के वे अवशिष्ट रूप जो जमीन की खोदाई करने पर निकलते हैं। जीवावशेष। पुराजीव। (फ़ासिल)।
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जीवास्तिकाय  : पुं० [जीव-अस्तिकाय, ष० त०] जैन दर्शन के अनुसार विशिष्ट कर्म करने और उनके फल भोगनेवाले जीवों का एक वर्ग।
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जीविका  : स्त्री० [सं०√जीव्+अ+कन्-टाप् इत्व] वह काम-धंधा पेशा या वृत्ति जिसके द्वारा मनुष्य को जीवन-निर्वाह के लिए धन तथा अन्य आवश्यक पदार्थ मिलते हों। क्रि० प्र०–चलना।–चलाना।–लगना।–लगाना।
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जीवित  : वि० [सं०√जीव्+क्त] १. जिसे फिर से जीवन या प्राण मिले हों। २. जो अभी जी रहा हो। जिसमें जीवन या प्राण हों। ३. (पदार्थ) जिसकी क्रियात्मक शक्ति काम कर रही हो या वर्त्तमान हो। (एलाइव) जैसे–जीवित कारतूस, बिजली का जीवित तार। पु० १. जीवन। २. जीवन-काल।
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जीवित-काल  : पुं० [ष० त०] जीवित रहने का पूरा या सारा समय। आयु। उमर।
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जीवित-नाथ  : पुं० [ष० त०] पति।
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जीवितव्य  : पुं० [सं०√जीव्+तव्यम्] जीवित रखने या रहने योग्य।
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जीवितांतक  : पुं० [जीवित-अंतक, ष० त०] शिव।
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जीवितेश  : पुं० [जीवित-ईश, ष० त०] १. जीवन का स्वामी। २. यम। ३. इंद्र। ४. सूर्य। ५. इड़ा और पिंगला नाडियाँ। वि० प्राणों से भी बढ़कर प्रिय। प्राणाधार।
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जीवी(विन्)  : वि० [सं० जीव+इनि] १. जीनेवाला। २. किसी विशिष्ट प्रकार की जीविका से अपना निर्वाह करनेवाला। जैसे–श्रमजीवी। शस्त्र-जीवी।
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जीवेश  : पुं० [जीव-ईश, ष० त०] १. जीव या जीवों का स्वामी। ईश्वर। २. प्रियतम।
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जीवोपाधि  : स्त्री० [सं० जीव-उपाधि] जीव की ये तीन उपाधियाँ या अवस्थाएँ–स्वप्न, सुषुप्ति और जाग्रत।
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